"मज़ा : ज़िन्दगी का" 'अकेले' होने का भी अपना मज़ा है न किसी के रुठने का डर और न किसी के मनाने की फ़िकर 'बेकार' होने का भी अपना मज़ा है न किसी के अपनाने की खुशी और न किसी के ठुकराने का डर 'अंधा' होने का भी अपना मज़ा है न किसी को दिखने की वजह और न किसी को देखने की चाह 'नासमझ' होने का भी अपना मज़ा है न किसी को ढ़गने की खुशी न ढ़गाने का गम 'मूर्ख' होने का भी अपना ही मज़ा है न खुद को बड़ा समझने का गुरुर न दुसरो को छोटा समझने का शुरुर 'दूरी' का भी अपना मज़ा है न पास आने की खुशी न गम क़रीब न होने का 'खोने' का अपना ही मज़ा है न हर दिन उसे देखने की प्यास न उसे पाने की आस 'हारने' का अपना ही मज़ा है न जीतकर लोगों की जलन और हारने वाले की बद्दुआ 'शांत' रहने का अपना ही मज़ा है न जलने की तपिश और न लड़ने की कशिश 'भूलने' का अपना ही मज़ा है न याद करके रोना और अपने अतीत के लिए आज को खोना 'माफ़ करने' का अपना ही मज़ा है न सज़ा देने का पछतावा न ऊपर वाले का बुलावा 'इशारों' का अपना ही मज़ा है न कहने की ज़रूरत न करनी पड़े कोई हड़कत 'कटाक्ष' का अपना ही मज़ा है न करनी पड़े बात और न ज़रूरी हो मुलाकात 'सब्र' का अपना मज़ा है खुद पर बना रहता है एतबार और कम भी नही होता प्यार 'सिद्दत' का अपना ही मज़ा है हद की कद भी दिख जाती है और बनी रहती है आस 'इबादत' की बात न पूछो खुद से दूर भी नही और रहते है हरदम रब के पास
इश्क़ का मज़ा... इतवार के बिना कुछ भी नही... इश्क़ यारो... ऐतबार के सिवा कुछ भी नही... उनके मासूम से... चेहरे पे फिदा कितने है... और उन्हें खबर... अखबार के सिवा कुछ भी नही...