खिड़कियों से आ रही
धुप ये जो मख़मल,
ओस से लिपट के जैसे
हँस रही हो हर कली,
खिल उठा रुआ-रुआ
जैसे खुश्बू संदली,
उसको ही ढूंढे नज़र
हर डगर और हर गली,
दिल में इक उठा तूफान
मच गई है खलबली,
वो बला की हूर है
है ज़रा सी मनचली,
इश्क हो मेरी वही
चाह थी यही दिली,
मैं मुकम्मल हो गया
जब से मुझको वो मिली।
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