अब पूछते हो क्या मेरा, वहाँ असर रहा,
खामोश है फिजाँ मेरा, जहाँ सफर रहा!
हवाओं को तो छूट है कहीं भी वो चलें,
मैं धूप था मुंडेर की सो, दर-ब-दर रहा!
जिसकी झलक तमाम उम्र, हमने तलाश की,
वो मौजज़ा भी खुद-ब-खुद, मेरी नज़र रहा!
महफ़िल में सर उठे सभी, की शिरकतें जहाँ,
उसके करम जलाल के, सदके में सर रहा!
आए हैं इस मक़ाम पर कल जाने हों कहाँ,
जब तक नहीं था होश में ,बेफ़िकर रहा!
कुछ बात है न जानें क्यों झुकती नहीं नज़र,
जिसकी गली में सब झुके, मैं बेअसर रहा!
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