"घरौंदा इश्क का"
सुहाना सा ये मौसम भी, कुछ खास नहीं होता,
मीठी-मीठी इन हवाओं का, आभास नहीं होता।
ये दुनिया मुझे चाहे कितनी भी खुशियाँ दे दे,
पर उनके बिना कुछ भी एह्सास नहीं होता।
जमानें की इस भीड़ में, खुद को अकेला पाता हूँ
उनकी यादों का कारवाँ, जब मेरे पास नहीं होता।
हमारे उनके दरमियाँ, ये दुरियाँ रहती ही नहीं
गर वो धरती नहीं होतीं, मै आकाश नहीं होता
खुदा ने गर उन्हे, बनाया ना होता मेरे लिये
तो जीवन में कुछ ऐसा, मिठास नहीं होता ।
थम सा गया होता, मेरे जिन्दगी का ये सफ़र
गर उनकी साँसो से जुड़ा, मेरा साँस ना होता।
घरौंदा इश्क का कभी बनता नहीं "नवनीत"
दिल में मेरे अगर, उनका निवास नहीं होता।
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