ये तीन अक्षर कहने का कभी मौका ही न दिया तुमने
जैसे मेरी रूह मेरी ना होकर कर तुम्हारी हो
जिसे सच और झूठ का पहले से पता हो
खुश हूं ये सोचकर के कभी मुझ पर
अपना फैसला न थोपा तुमने
आज खुद से ज्यादा जाना तुम्हे हमने
जाने ये वक़्त का तकाज़ा है या हमारी तकदीर
मगर जो भी है खुदा का बहुत खूबसूरत करिश्मा है
जहाँ खुद से ज्यादा मुझ पर विशवास किया तुमने ।।
खुश हूँ ये तीन अक्षर कहने का कभी मौका ना दिया तुमने
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