हमारी खामोशियों को आवाज़ मिल गई,
कहने को उनसे एक बात मिल गई,
सिर्फ पर्दे से ही देखा था अब तक उन्हें,
आज हमसे उनकी तस्वीर बन गई,
नोक झोक तकरार तो हमारी होती थी,
इस बार बिन कहे ही वो मान गई,
वो पलके झुकाये हमारे सामने बैठी है,
मानो जैसे हर दुआ कुबूल हो गई,
पलके उठी नज़रे मिली समा थम सा गया,
आज हमारी किस्मत एक डोर से बंध गई,
अब तलग कोरी किताब थी हमारी ज़िन्दागी,
उनकी दस्तक से शब्दों की बरसात हो गई।।
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