कोन कहता है दोस्ती और मोहब्ब्त एक सी होती है फर्क है दोनो मे सालो बाद मिलने पर दोस्त गले लगा कर उसी अंदाज से मिलता है और वही मोहब्ब्त सालो बाद मिलने पर नज़र चुराती है।।
है ग़नीमत के मन्ज़िलों के कितने करीब हैं, और फिर भी नहीं हासिल, बड़े बदनसीब हैं.. उम्र गुज़री सफ़र में, फिर भी न कहीं पहुँचे, ये रास्ते मोहब्ब्त के कितने अजीब हैं....
हम रूहानी मोहब्ब्त करने वालों की दुनिया भी कितनी बाकमाल और एकदम से खूबसूरत होती हैं.. जिससे प्यार हैं उसे देखे बिना उससे बेइंतहा मोहब्ब्त करते हैं रूहानी मोहब्ब्त के लिए जिस्म की कहाँ जरूरत होती हैं...
दिल किसी से हम लगाते नहीं, बस ये सोच कर परहेज़ करते हैं. के दिल से दिल के अब रिश्ते नहीं, समझौते हैं कुछ और ढेर सी शर्ते हैं.. कैसे आख़िर किसी पर यकीन करें? कसमें खा कर भी जब लोग मुकरते हैं... हम भरोसा भी कर के देख चुके हैं, इस लिए अब भरोसा भी करने से डरते हैं....
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