वास्तव में उसकी वो चश्मे वाली भोली शक़्ल आज भी जहन में ताजा है... उसका छुप छुप के मुझे देंखना..अपनी बेंच पे प्रकार की नुकीली नोंक से लकड़ी को कुरेदकर मेरा नाम लिखना..टीचर के उत्तर पूछने पर खो जाना और मेरी तरफ देखते हुए उसका कहना कि सारे जहां से अच्छी हो तुम..और फिर अनायास ही मुस्कुराते हुए भरी क्लास के सामने मार खाना.. वो तब भी ऐसे मुस्कुराता था मानो उसे लकड़ी की कठोर बेंत नहीं लड़की के कोमल हाथ स्पर्श कर रहे हों....❤️💕
मैं भी उसकी मदद करने ही वाली थी लेकिन मेरी तकदीर में तो कुछ और ही लीखा था उसने मेरी ही खुसी के लिए अपनी जान दे दी... आज भी मेरी दिल में धड़क ता है वो... आज भी उसकी याद आता है मुझको...
गर्दिश में चाँद तारे भी साज़िश करेंगे, तेरी ज़ालिम निगाहें जब हमसे ज़िया माँगेंगे। मायूस न होना 'नफ़रत-ए-ग़ालिब' ! क्योंकि हम तब भी, तेरे दर पर 'मोहब्बत की रौशनी' लिए खड़े होंगे ।।
सबके सवालों के घेरे में था डरा सहमा एक टक देखे जा रहा था मैं कुछ बोलू दिल के राज खोलू लेकिन समाज की बेड़ियां पैरों में जो बंधी थी कहीं प्यार बदनाम न हो जाए इस लिए डरी थी चुप थी...कसूर यही था हमारी जाति अलग थी और ओ सामने था...