मेरे सपने........
अब मैं पिजरे से निकलना चाहती हूं,
सपनो की दुनिया में खोना चाहती हूं,
अपने पैरो को फैला कर मैं,
आजाद परिंदे की तरह उङना चाहती हूं ।
आसमान को छुना चाहती हूं,
जिन्दगी को जीना चाहती हूं,
जो सपने देखी हूं मै
उन सपनो को हकीकत में बदलना चाहती हूं ।।
नदियो की तरह बहना चाहती हूं,
कोयल की तरह कूकना चाहती हूं,
जो वृक्ष तूफानो से लङना जानते है,
उन वृक्षो से बनना चाहती हूं।।
सुरज सा दहकना चाहती हूं,
चन्द्रमा की तरह चमकना चाहती हूं,
जो पत्थर विशेष आकृति का रूप ले लेते है,
उन पत्थरो सा बनना चाहती हूं।।
हवाओ सा बहना चाहती हूं,
परेशानियो से लङना चाहती हूं,
समुन्द्री सीप से जो मोतीयाँ बनती है,
उन मोतीयो सा बनना चाहती हूं ।।
हिमालय सा विशाल होना चाहती हूं,
वंशी की पुकार होना चाहती हूं,
वह रात रानी जो रात्री को सुगंधित कर देती है,
उस रातरानी की तरह महकना चाहती हूं।।
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