मैं दिन गिनता ,हर शाम गिनता ,
बेशबर हर खबर , घड़ी चार गिनता ।
जिस सुबह, तेरे हाथों की प्याली ना हो,
उस सुबह को , समय से निकाल गिनता।
मैंने देखे नजारे बहुत है मगर ,
वो नजर ना कहीं , जहाँ चाँद दिखता ।
देता तुझको भी कसमे हवाओँ के मैं,
रुक जाओ पहर , घड़ी चार गिनता ।
मैं दिन गिनता , हर शाम गिनता,
बेशबर हर खबर , घड़ी चार गिनता ।
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