तुम सीख जाओ बोलना भी, मन की हर बात को,
मैं हूँ निपट अनपढ़, मुझे पढ़ना तक नही आता!
दिखा दो अपनी आंखें खोलकर दिल के आईने को,
मुझे आँसुओं की जुबान का तज़ुर्मा भी नहीं आता!
जता दो पर्दे के पीछे की छिपी ख़्वाहिशों की मूरत,
मैं नही हूँ शिल्पी, मुझे पत्थर तराशना नहीं आता!
बहा लो मुझे भी अपने संग, जज्बातों के भंवर में,
मैं हूँ शांत समंदर, मुझे लहरें उठाना नही आता!
भर दो साँसे मेरी जिंदगी में, तेरी साँसों की तरह,
मैं बसर करूँ तो कैसे, मुझे जीना तक नहीं आता!
जो भी हूँ, जैसा भी हूँ, जंहा भी हूँ, तेरे सामने ही हूँ,
समेट लो मुझे बाँहों में, खुद को बिखेरना नहीं आता!
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