कभी पूजा में फँस गया, कभी अज़ानों में फँस गया,
बढ़ीं नफ़रतें तो मुल्क मेरा, बूचड़खानों में बँट गया..
वह एक शख्स था जिसको मसीहा प्यार का समझा,
सुना है उसका भी ईमान, इबदतखानों में बँट गया..
बना लो यार तुम मंदिर, बना लो यार तुम मस्ज़िद,
वो जो भूखा था कुछ दिनों से, कल पटरी पर कट गया..
असद सब फ़ौत हो गए, बचे हैं मुट्ठी भर शोहदे,
दौर-ए आज़ादी में इस मुल्क का हर मर्द छँट गया...
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