2012 - वो साल जब मैं तुमसे पहली बार मिला था । हर दिन तुम्हें जाते हुए तब तक देखना जब तक तुम सड़क पर दाएं मुड़कर ओझल न हो जाओ, यह पहले दिन से मेरी आदत में शुमार था । आज भी सोचकर अच्छा ही लगता है । खैर, उसमें कुछ बुरा था भी कहाँ ।
2013 में तुमसे पहली और आखिरी बार इशारों में यह जताने की कोशिश की थी कि 'तुम, ऐ खूबसूरत, कितनी पसंद थीं मुझे', जो शायद तुम कभी समझ भी न सकीं थीं । उस साल exams के बाद दिमाग को दिल से आगे रख कर यह निश्चय किया था कि इस बारे में तब तक कुछ नहीं कहूँगा जब तक खुद से कुछ करने लायक न हो जाऊं । सच कहूँ तो नहीं जानता कि उस दिन कितनी बातें खुद पर और कितनी किस्मत पर छोड़ी थीं । पर इस निर्णय का कभी बुरा न लगा ।
पर आज खुश हूँ कि तुमसे मिल सका, दोबारा । और ज़्यादा खुशी इस बात की है खुद के बूते पर कुछ कर सकने लायक होने के बाद तुमसे वह सब कह सका जो आजतक तुम्हारे बारे में महसूस किया है ।
क्या पता, शायद यह भी उसी का हिस्सा हो ।
मदद करो न मेरी । जल्दी मिलो मुझसे । फिरसे ।
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