सब कहते हैं माँ !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ ,तुम्हारी छाप है मुझमें ...
वे गलत हैं , मैं तुम जैसी
बिल्कुल नहीं हो सकती
मेरा सिर्फ मुखड़ा मिलता है तुमसे
तुम्हारे गुण नहीं हैं मुझमें ..
सब कहते हैं माँ !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ , तुम्हारी छाप है मुझमें ....
मैं सिर्फ तुम्हारा अंश हूँ
तुम जैसी कभी नहीं बन सकती
तुमने जितने संतोष किए हैं
उतना धैर्य नहीं है मुझमें ..
सब कहते हैं माँ !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ , तुम्हारी छाप है मुझमें ....
तुमने कितना कुछ सहा है
कभी जुबान ना खोली
और मैं आजादी प्रिय
किसी को सहन नहीं कर सकती
तुमने सब के अत्याचारों को
आदर सम्मान दिया
मैं ऐसे रिश्तो की जिम्मेदारियां
वहन नहीं कर सकती
जितना साहस, जितना धैर्य
जितनी शीतलता है तुममें
माँ ! ऐसा तो कुछ नहीं मुझमें ..
सब कहते हैं मां !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ , तुम्हारी छाप है मुझमें ....
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