कोई रंग तो होगा
साया ही तो है , शब_ए_माहताब में कहीं गुम होगा,
सांसों में इत्र सा महके,खुश्बू सा कोई संग तो होगा ।
जिस्म के तराजू में, तोलते क्यों सच्चाई तवायफ की,
बिकती वर्दी बाज़ारो में, बेशर्मी का भी ढंग तो होगा।
कोरे पन्नों पर लिख दर्द को, सीने से हमने लगाए रखा
बोझ दर्द_ए_दिल का संभाल ले,ऐसा भी अंग तो होगा।
पढ़ते पढ़ते थक गए जिंदगी, बिखरी तेरी किताब को
जिल्द पन्नो की संभाल कर, मुकद्दर भी तंग तो होगा।
जख्म पाकर भी छोड़ा ना , इल्म सदा मुस्कुराने का
देखकर बेफिक्री इस कदर , वो रब भी दंग तो होगा।
पसीने की स्याही भर, लिखा है मुख्तसर जिंदगी को,
लकीरें हाथो की बदल दे, मन्नतों का भी रंग तो होगा।
मुख्तसर = छोटी
शब_ए_माहताब = चांदनी रात
इल्म = हुनर
जिल्द = Binding
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