चाँद सा मुखौटा डाल, वो छत पर जो आती है हाय, क्या अदाकारी से वो हमसे नज़रें चुराती है चाँद भी दागों के चंगुल में फँसा नज़र आता है मोहतरमा तो यहाँ चाँद को भी मात दे जाती है
अजनबी से बन के मुझसे सवाल पूछते हैं..सब कुछ उन्हें पता है क्या हाल पूछते हैं । हर पल डराया हमको जी पाओगे ना हम बिन ..फिर छोड़ गए हमको अब हाल पूछते हैं। सौ लानते उठाई एक हमने उन की ख़ातिर ...अब क्या है तेरा मुझ पर उधार पूछते हैं। थी जिस्म की जरूरत जिनके लिए मोहब्बत..किसने किया है मुझको तबाह पूछते हैं। है हवस के पुजारी ओढे सराफत का मुखौटा...कैसे हुई सराफत नीलाम पूछते हैं। अय्यासियों के खिस्से मशहूर है खुद जिनके ...वो जा के हर किसी का ईमान पूछते हैं।