ज़हन में मैं ऐसा सफ़र सोचता हूँ,
जुदा सबसे अपना मुकाम सोचता हूँ!
मेरे दिल से तेरे दिल तक, मैं पहुँचूँ,
बने ऐसी कोई डगर, मैं सोचता हूँ!
चलो इस बहाने मैं तुम से मिलूंगा,
बुरा क्या है खुद पे अगर सोचता हूँ!
मुक़म्मल मेरा फ़ैसला क्यूँ न होगा,
मैं हर बात पे सिर्फ तुम्हे सोचता हूँ!
बहुत मिल चुका ख़्वाबों में अब तक,
मिलन की मैं सूरत दिगर सोचता हूँ!
उधर जान लेते है जाने वो कैसे,
वो हर बात जो मैं इधर सोचता हूँ!
पराया मैं खुद को भी लगता हूँ उस दम,
मैं रिश्तों से ज़्यादा तुम्हे सोचता हूँ!
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