सबसे भयंकर दर्द,,
चुप्प चाप होके सहना है;
घर में भी कोई "जान" न पाए,,
इसका बखूबी ध्यान रखना है...
ये असहनीय पीड़ा,चाहे "जान" भी ले ले,,
ध्यान रहे इसके बारे में;
किसी को पता भी नही चलना है...
पूरे दिन तड़पो,रात भर कराहो,,
पर हुआ क्या तुम्हें;
इसका असर चेहरे पर भी नही दिखना है...
मानो किसी पाप की सज़ा मिलती हर महीने
जो पुरुष को पता चले तो शर्म से तुम्हें मरना है
अजब दुनिया की गजब रीति,,,
इस पवित्रता को अपवित्र का नाम दिया;
सात दिन तक,न कर सकते पूजा पाठ,,
किचन से भी दूर रहना है...
पानी को भी हाथ न लगाओ,,
अछूत बनकर इन दिनों रहना है...
देवी दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती तब तुम नही,,
मानो कोई कुल्टा है...
दादी मम्मी चाची भाभी,सबने बस यही कहा है;
बेटी ये गंदगी निकलती बाहर,,,
इसके बारे में कहना मना है...
अभी तो दर्द बड़े है आने,,
ये तो उसके मुकाबले बहुत थोड़ा है;
वक्त के साथ आदत हो जानी,,
ये तो हर लड़की ने सहा है...
बदल न सकते मानसिकता किसी की,,
कुछ इस कदर उनमे ये भ्रम भरा है;
सहनशक्ति का नाम ही है स्त्री,बस सबने यही पढ़ा है...
सबने यही पढ़ा है,,बस सब सबने यही पढ़ा है...!!
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