उसके चेहरे, उसकी आँखें, उसके बालों की महक
कहीं मेरी जान ना ले जाए उसके गालों की महक
इश़्क उसका ज़िन्दगी जीने का सहारा बन गया है
हर वक़्त मुझे अब हँसाए उसके ख़्यालों की महक
जब भी कभी जाने का नाम लिया सहम जाती थी
अब मुझे और भी तड़पाए उसके रुमालों की महक
वो बोलती रहती और मैं उसमें कहीं खो जाता था
कौन उस पगली को समझाए इन सवालों की महक
उसके दूर जाने से ज़िन्दगी सहम सी गयी है अब
उसकी तरह ना बहलाए श़राब के प्यालों की महक
चैन, सुकून, ख़ुशी, भूख, सब था "आरिफ़" के पास
उसकी तरह ही कौन खिलाए इन निवालों की महक
"कोरा काग़ज़" बन के रह गया हूँ बिना उसके अब
जो भी चाहे लिख जाए उसकी इन चालों की महक
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