तन्हा अकेले से इस डिजिटल वर्ल्ड में
एक रास्ता, एक चराग़-ए-रहगुज़र मिल गया
किनारे पड़े सुस्ताते थे मेरे अल्फ़ाज़
उन्हें एक बहता दरिया मिल गया
दिल में दबे थे कुछ ख़्वाब-ओ-ख़याल
उन्हें ज़ाहिर करने का ज़रिया मिल गया
'मुझे पढ़ने-सुनने' वाले, दीवाने मिले
उन्हें 'उनकी' कहने वाला, मस्ताना मिल गया
अपने दर्द लिखकर, उनके दर्द दिखाने लगा
मुझे अपने और उनके दर्द का, मलहम मिल गया
कभी हँसाता हूँ, हँस देते हैं
कभी रुलाता हूँ, रो देते हैं
मुझे 'मुझ जैसे', उन्हें 'उन जैसा' मिल गया
वो कहते हैं, 'है यह' लिखने-पढ़ने का मंच
मैं कहता हूँ, मुझे तो 'हमराज़' मिल गया
नाशाद-ओ-नकारा सा है यह 'सागा'
फ़िर भी देखो, परायों में 'परिवार' मिल गया
- साकेत गर्ग
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