यह किस सफऱ से आया हूँ
यह मैं किस सफऱ पे जाता हूँ,
इक लम्हें से जुड़ता हूँ
तो इक लम्हें से बिछुड़ जाता हूँ,
उम्र ने कितने प्यार से..
छीन ली रंगत चहरे की,
के अब पुरानी तस्वीरें देखकर ही
..मैं संबर जाता हूँ,
है गुलाब के फ़ूल सी..
बेबस यह ज़िन्दगी
के काटों में भी मैं
ख़ूबसूरत सा नज़र आता हूँ,
फैला यह कैसा मर्ज़ है..
के खुल गयी परतें रिश्तों की
ख़ुद को ही छूने से
आजकल में डर जाता हूँ..!
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