सुना है बात वो करता है अब बस मय के प्यालों से
कभी तुम पूछना जाकर ये उसके पावों के छालों से
गुमां करती थी ज़िन्दगी, अपनी हाजिरजवाबी पर
खड़ी है नजरें झुकाए, बेजवाब उसके सवालों से
समंदर भी उसे मौजों पर अपनी सैर कराता है
जो डूबा हुआ है महबूब की आंखों में सालों से
गया था छोड़ कर इक रात तड़पता हुआ जो शख्स
लबों पे आती है अब मुस्कान, उसके ही ख्यालों से
नहीं दरकार है खुशियों की, वो अंधेरा चूम लेता है
किया रोशन है उसने दिल को अब गम के मशालों से
कहां कहता वो अपना दर्द अब किसी इंसान से "निहार"
सुना है बात वो करता है अब बस मय के प्यालों से..!!
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