फूलों की खुशबू में, मदहोश जवानी है,
भ्रमरों की रंगत तो, जानी पहचानी है.
सभ्यता कहाँ अपनीं, लज्जा अधनंगी है,
पश्चिमी सभ्यता की , भई चूनर धानी है.
अपने कौन कहाँ? अपने भी पराए हैं,
माया के चक्कर के , रिश्ते बेमानी हैं.
मम्मी डैडी आए, माँ बाबा चले गए,
हाय,बाय में दुनियाँ ,हो गई सयानी है.
सर पर पत्थर मारो ,कह साॅरी चले चलो,
इंसानियत बनीं देखो, अब कैसी हैवानी है.
घर एक नया आता, दो घर से बाहर जाते,
वृद्धाश्रम में देखो , अश्कों की जुबानी है.
नारी बस में नर ,बन मरकट नाच रहे,
कलि के आंगन में, क्या अजब कहानी है.
-