इस बदलते मौसम में , दोहराओ यही कहानी । रोगों से बचने की खातिर , पियो मटके का पानी । सोंधी-सोंधी खुश्बू इसकी , सब ने जानी-पहचानी । कर लो सरल उपाय , पियो मटके का पानी ।
मटके के ठंडे पानी को भूलकर फ्रिज का ठंडा पानी पीने लगे है लोग, कुम्हार बोलते है बर्गर पिज्जा पर बिन सोचे खर्चा करने वाले एक मटके के लिए हमसे मोल भाव करते है वही लोग !
मैं सरकारी स्कूल में पढ़ा, तुम CBSE की क्वीन प्रिये,, मैं मटके का ठंडा पानी, तुम फ्रिज की आइसक्रीम प्रिये,, मैं घर की सादा चप्पल, तुम ब्रांडेड शूज प्रिये,, मैं घर का नालायक लड़का, तुम घर की महारानी प्रिये,,
आज की सुबह थोड़ी अलग थी! हाथ में चाय का कप नहीं बल्कि सिर पे मटका था। पँखे की गरम हवा नहीं पेडों की ठण्डी हवा थी। कमरे में, मैं अकेली नहीं बल्कि गाँव के जाने-पहचाने चेहरे थे। एक पल के लिये वो हैंडपम्प चलाते हुऐ मैं बस सोच ही रही थी, शायद ये बदलाव जरूरी था मेरे लिये। मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, ये नये रूप में ढ़लते हुवे। ऐसा लग रहा है, जैसे मैं अँदर से बहुत शाँत होती जा रही हूँ। और बस चीज़ों को समझती जा रही हूँ।