"जरूरी है क्या"
पास जो आ रही हो मेरे, कोई मजबूरी है क्या।
हमारा तुम्हारा मिलना, अभी जरूरी है क्या।
ठुकरा कर गयी थी यूँ कि, बेवफाई की हो मैंनें
अब रक़ीब ने कर ली, तुमसे बहुत दूरी है क्या।
कल कह रहा था कोई, देखा तेरे महबूब को गैर के साथ
इतना जो महक रही हो, बाहों में उसकी कस्तूरी है क्या।
कहा था तुमनें सरेआम कि, तुम मेरे काबिल नहीं हो
फिर से इश्क कर रही हो, दिल की भी मंजूरी है क्या।
पास बैठ मेरे गुफ़्तगू करो तुम, पहले तो नहीं हुआ यूँ कभी
कुछ प्यार की धुन सुन रहा हूँ, होंठों पे तेरी बांसुरी है क्या।
सीखा दिया था मैंनें इस दिल को, सलीका तेरे बगैर जीने का
अब चाहती हो मुकम्मल करना, कहानी मेरी अधूरी है क्या।
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