चार कदम लिखता हूं ..दो कदम चलने को.. हवा की पतंग ले कर.. सारा गगन मलने को.. डोरी ख़्वाब की लेकर, नींद की सुई में डालूं.. ज़िन्दगी सिल लेता हूं, फिर से मगन रहने को..
आग से ना पुछो तुम की अगन क्या हैं, राख से ना पुछो तुम की जलन क्या हैं! रूह से ना पुछो तुम की बदन क्या हैं, साधु से ना पुछो तुम की मगन क्या हैं! माली से ना पुछो तुम की चमन क्या हैं, फौजी से ना पीछे तुम की अमन क्या हैं!