मैं शहर "बनारस" बन जाऊं तुम गंगा नदी सी बह जाना मैं घाट घाट ठहर जाऊँ बन दीपक जल में जल जाना मैं घाट "केदार" का चरण छू लूँ तुम गंगारती सी दरस जाना मैं "विश्वनाथ" में रम जाऊँ तुम "संकटा" सी संकट हर लेना मैं "दशाश्वमेध" में बस जाऊँ तुम "शीतला" बन उबार लेना ये ज़िंदा शहर "बनारस" है "मणिकर्णिका" सी मुक्ति दिला देना ये मन व्याकुल हो भटकता है चौसठ योगिनी बन धर लेना में बार बार जो राह भूलूँ बन कपीश राह दिखा देना हे त्रिपुरारी जगतपति अपने में मुझको समाना तुम जह्नु सुता हे माँ गंगा अंत में अंक में भर लेना तुम
चाइना से जो सीखने वाली चीज है, वो ये की कोई आरक्षण या उच-नीच नही। सबको बराबर मात्रा में प्रसाद वितरण हुआ, यहाँ तो मंदिरों में भी लाइनें अलग-2 लगती थीं।
एक तुम ही इतने खास हो जिसको सबसे छुपा के रखा है तुम्हारे लिए ही मैने खुद को इतना सजा के रखा है और बेशक नही हो आज साथ मेरे पर मैने तुम्हारे साथ केदारनाथ जाने का सपना सजा के रखा है 😊❤️