मन के एहसासों को मैं कैसे तुम तक पहुंचाऊं? हँसी के पीछे के दर्द को मैं कैसे तुमको दिखलाऊं? कितनी रातें जागा हूं मैं कैसे तुम को समझाऊं? मंज़िल तक कैसे पहुंचा हूं मैं कैसे तुम को बतलाऊं?
रास्ते ही तो बिछड़े हैं अपने । मंजिलें तो अब भी वही हैं अपनी। एक हंसी मोड़ देकर छोड़ दिया हमने। लेकिन कहानी तो अब भी वही है अपनी। ज़िन्दगी में वक़्त का पहिया फिर घूमेगा अपना। शायद किसी मोड़ पर फिर मुलाकात हो अपनी।