QUOTES ON #मंजिल

#मंजिल quotes

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7 JUL 2020 AT 20:59

मैं मुसाफ़िर हूँ चलता जाऊँगा
अपनी मंज़िल तक
इक न इक दिन जरूर पहुँच जाऊँगा
माना राह में दुश्वारियाँ होंगे
मैं फिर भी सरलता खोजता जाऊँगा
मैं घने अवसाद में
अपनी सफलता ढूँढता जाऊँगा
मैं मुसाफ़िर हूँ चलता जाऊँगा
सारे दुश्वरियों को झेलता जाऊँगा।

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28 MAY 2021 AT 12:26

पत्थर स्वयं हटाने होंगे,
खुद ही पांव बढ़ाने होंगे।
गर मंजिल तक पहले पहुंचे,
सब अपने दीवाने होंगे।
चूक गए गर आंखों से तो,
अपनी ओर निशाने होंगे।
शंख सीपियां चुनना है तो,
गोतें कई लगाने होंगे।
खुद को रौशन करना है तो,
दीए कई जलाने होंगे!!

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8 JUN 2021 AT 13:59

हां !..
सत्य की राह पर चल मंज़िल को पाने की
किसी को सत्य मार्ग पर अपने साथ ले जाने की
किसी का भविष्य संवारने की चाह होनी चाहिए
आनंद को सदा आनंद में आनंदित रहने की

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20 NOV 2019 AT 16:17

ऐसा लगता है किसी भ्रम के साये में बिखर सा गया हूं

ऐसा लगता अहसानों के बोझ तले कहीं घिर सा गया हूं

ऐसा लगता मेरा साया मुझसे पूछ रहा क्या तेरा कोई वजूद नही?

ऐसा लगता है खुद की निगाहों में कहीं गिर सा गया हूं

हर बार दुःखो का सागर किनारे पे आ जाता है

जख्म पूरी तरह भरे नही तकलीफें बढ़ा जाता है

बस पूरी शिद्दत से ज़िन्दगी तराशना चाहता हु

खुद की कलम से ज़िन्दगानी लिखना चाहता हूं

कोहरे की धुंध में मैं अकेला चलता जा रहा हूं

राहों की कोई उम्मीद नही बस अकेला बढ़ता जा रहा हूं

ना जाने कब तक साथ चलेगी ये परछाई मेरी

बस उसका साथ छूटने से पहले अपनी कहानी खुद लिखता जा रहा हूं

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6 AUG 2018 AT 9:18

वो मुझे हराने की दौड़ में लगे रहे,
और मैं खुद को जीतने की।

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6 JAN 2022 AT 16:59

ख़ुदा ने कुछ लोग कच्चे मकानों में
कुछ बँगलों में बसाए हैं...
कमल कीचड़ में भी खिल गए
ग़ुलाब काटों में भी मुस्कराये हैं,

हवा वही चलती है.. ख़ुश्बू वही है सांसों में
बस.. कुछ आँगन में फ़ूल ख़िलते हैं
कुछ गमलों में सजाए हैं,

उम्र की सहर का यह आफ़ताब.. शाम ढ़ले छिप जाएगा
यह जुगनू भी बुझ जाएंगे..
जो ज़िन्दगी के शहर की चकाचोंध देखने.. जंगलों से आये हैं,

अज़ीब है ना..
कमल कीचड़ में भी खिल गए
ग़ुलाब काटों में भी मुस्कराये हैं!


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28 MAY 2020 AT 19:12

है कौन.., जो जाता थक नहीं
जीवन इक तपोवन से पृथक नहीं,
जब तक आशा है.. मन "राही"
तेरे प्रयास जाएंगे व्यर्थ नहीं,
जीवन तो युद्ध है.. कर्मों का
छुटे ना सारथी.. रथ कहीं,
उस पार इस दुःख की सराय से
जाता तो होगा.. कोई पथ कहीं,
देखना निराशा का यह निर्मम साया
साथ जाएगा.. तेरे दूर तक नहीं,
तू शज़र सा तूफानों से लड़ मनवा
बेलों सा यूँ पग-पग..लचक नहीं,

यह मुस्कुराहटें चाहे क्षीण सही
है ख़्वाइशों पे.. किसका हक़ नहीं,
जब पत्थर में रब पूजा है
फिऱ दुआओं पे कर यूँ..शक़ नहीं..!

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4 MAY 2020 AT 13:10

आ तो गए हैं पथ पर, मंज़िल का पता नहीं!
ले तो लिया है संकल्प, पूरा अभी हुआ नहीं!!
दिखता नहीं अब दूर दूर तक कोई सहारा,
फिर भी ये अभिमान अभी तक घटा नहीं!!!

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10 DEC 2021 AT 19:25

जरूरत
तुम्हारे हाथो हम मजबूर है।
मुझे ये भी मंजूर है।
क्योकि मंजिल थोडी दूर है।

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1 MAY 2020 AT 17:17

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