क्रांति और भ्रांति दो अलग अलग चीजें हैं । क्रांति त्याग एवं शौर्य से जीवंत की जाती है,जबकि भ्रांति को ढोंग से प्रमाणित किया जाता है । इस बात को भारतीय इतिहास से भली भांति समझा जा सकता है । वह इतिहास जहां नपुंसकों को राष्ट्र रत्न बताया गया हैं,एवं सभी तिथियां उनके विभत्स कारनामें से जोड़ दी गयी........हैरान हो जाता हूं राष्ट्र में वीरों का तिरस्कार देखके.....आप ही सोचीये जिस राष्ट्र ने शहीदों का सम्मान नहीं किया वो कैसे सुखी रह सकता है.............नतीजा तो यही होता जो हम भुगत रहे हैं । सभी सार्वजनिक मंचों से मात्र झूठ एवं पाखंड ही कहे और किये जाते हैं ।...........सच में दुखद
ना तो भूख मिटी देह की न ही मन को मिली शांति,, भटकता ही रह गया बंदा कैसी है यह भ्रांति। जीवन चक्र में उलझ कर अपने ही जाल में फस गया, उड़ने की आशा लिए जमीन में ही धस गया।।
बहुत हुआ अब सहा नहीं जाएगा दिल दिमाग का दर्द हटाया जाएगा जितने जख्म मिलने थे मिल चुके अब ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा भ्रम भ्रांतियां के सिलसिले बहुत हुए अब स्पष्ट समझा और समझाया जाएगा
कुछ ना कह कर सब कुछ मैं कहती हूँ.. दूजा कोई क्या जाने क्या मैं सहती हूँ... आँखों की चमक नहीं ये आँसुओं की कांति है.. खुशी कुछ और नहीं जीवन की एक भ्रांति है...
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