तुम्हारी तलाश में फिर रहीं हूँ,
क्योकि अब तो तुम्हारा ही "सफर" है "मंज़िल"मेरी .....
अब ख्वाहिश यही हैं कि...
ये सफर अब खत्म ना हो
और तुमसे मिलने की चाहत भी कम ना हो ,
अब तो हर दर्द में मरहम हो तुम्हारे ख्यालों का,
अब तुझ में खोने का मन करता है..
खुद से भी मिलने का मन नहीं करता ,
सोचती हूं शायद ऐसे पा लुंगी तुमको पर ये
सिर्फ भ्रम मात्र ...............
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