मन कागज़ की नाव है साथी,
लहर लहर नौका बलखाती.!
रंग रंग के स्वप्न दिखाए,
कैसे कैसे भेद छिपाए.?
कांप रही लौ बुझती जाती.!
मन कागज़...
सच से दूर लगाए डेरा,
मन है दुश्मन तेरा मेरा,
इसकी राह बनी आघाती.!
मन कागज़..
कौन किसे कैसे समझाए?
सबको इसने सबक सिखाये,
मन की तरंगें सबको भगाती,
मन काग़ज़..
सिद्धार्थ मिश्र
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