जो कहा गया है उसे दोहराना भी जरूरी है सर हिलाना भी जरूरी है वरना क़त्ल कर देगी कोई बड़ी बात नहीं भीड़ ही तो है वो कई छुपे चेहरे लिये हुए कोई एक चेहरा ढूंढना मुश्किल होगा असली चेहरा तो भीड़ से अलग होगा अपनी कारस्तानी पर मुस्कुराता अपनी वीभत्सता पर कहकहे लगाता कभी पहचान में न आयेगा भीड़ की बेवकूफी पर अपनी समझदारी पर शेर बना कहीं अलग थलग होगा भीड़ भेड़ों की ही तो थी....!!