""" संवेदनाएं """
मानव मन में निहित संवेदनाएं ,
कभी सूक्ष्म रूप में तो
कभी बहते हुए लावा की तरह ,,,
कुछ भी अनायास घटित होने पर
एकदम से प्रकट होने का भाव लिए
पिघल जाती हैं नेत्रों में मोम की तरह ,,,
उपस्थित हो जाती हैं तुरंत ही
किसी के दर्द की मुखर या मौन
वात्सल्यमयी सांत्वना बनकर ,,,
कराह उठती हैं किसी की हल्की सी आह पर ,
हाँ, शायद कुछ चुभा हो अपने स्वयं के अंदर ,,,
कुछ टूटा हो मन के अंदर
दुख के कठोर वज्र से टकराकर ,,,
राहत सी मिल जाती है मन को ,
जब ये संवेदनाएं अपने महीन,कोमल
आँचल में ढाँप लेती है पीड़ा को ,,,
और बचाने की हर संभव
कोशिशों में लग जाती हैं
दर्द के उस भयावह संताप से ,
जो अनायास ही घटित हो मानव जीवन को
विचलित करने की क्षमता रखता हो ,,,
तब टूटकर बिखर जाने से
बचा लेती हैं व्यथित मन को
जब ये सहलाती हैं अंतर्मन को ,
कभी मुखर होकर कोमल शब्दों से
तो कभी मौन होकर आँखों के भीगेपन से,,,
हाँ ये गहरी सी संवेदनाएं
मानव- मन की कोमल भावनाएं |......निशि 🍁🍁
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