हाथों में ले मज़हब की तलवार,बंद करो यह हाहाकार,
मनुष्यता की सुन करूण चीत्कार ,मानवता का कर सत्कार,
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में है भाई-भाई,
लेकिन धर्म के ठेकेदारों को, यह बात कहाँ है रास आई,
ज़हर घोल कर द्वेष का ही तो, इन्होनें अपनी गद्दी पाई,
कीमत इस ताकत की भूख की, मानवता है चुकाती आई,
अब तो अपनी आँखे खोलो, सच्चाई को खुद तोलो,
अंधभक्ति का समय नहीं यह,अपनी बुद्धि के ताले खोलो,
प्रेम-त्याग की शक्ति को, पहचान नहीं जो है पाया,
उसका वजूद अन्धकार में, अक्सर गुम होता आया,
गौतम, गांधी और कबीर, जीसस, नानक और रहीम,
सबने दिया एक संदेश, प्रेम-भाईचारे में रंग अपना भेष |
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