किस मोड़ आ रुका हूं मैं, किस और चल रहा हूं
मंज़िल अभी है दूर यहां, किधर और पल रहा हूं
निकल गया हूं राहों की, बंदिशें अपना मैं लेकर
अब पाना है आशियाना, ये रातों को बटोर कर
गिर गिर कर सीखूं मैं, फ़िर से उठने का तजुर्बा
पार करना भटके रास्तों को कहलाना है अजूबा
क्यों इतना तुम चिंतित हो, कुछ पल थम जाओ
देखो अपने चारों और, ख़ुद में विश्वास जगाओ
नहीं दूर है सफ़र तुझसे, रख हौसला तू ख़ुद में
पहुंचना है तुझे मंज़िल तक, हर उम्मीद है तुझमें
किस मोड़ आ रुका हूं मैं, किस और चल रहा हूं
मंज़िल अभी है दूर यहां, किधर और पल रहा हूं
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