2. कल सरहद पर देखा कुछ बगुले उड़ते हुए सीमा रेखा पार कर गए जा बैठे दूसरी तरफ के एक दरख़्त की शाख़ पर यह दरख़्त इक छोटा पौधा था उस बख़त जब रेखाएँ खींची थीं जमीनों पर और बनी थी सरहद अच्छे संस्कार हैं इसमें यह हवा, धूप और परिंदों में विभाजन नहीं मानता झूमता है पुरवईया के झोंके में नहाती हैं पत्तियां इसकी सुबह की धूप में जब सूरज इस तरफ होता शाखाएँ बाँहें फैलाई रहती हैं इसकी परिंदों की अगवानी में इंसान होता तो गोलियों से छलनी कर गया होता उन बगुलों को अबतक...
हाथ मेरे, काम्पने लगे आज, जैसे ही पता चला कि, अचानक से आप, बॉर्डर पर जा रहे हो, लेकिन न जाने क्यों, मेरे दाएँ हाथ की , एक अंगुली का पोर, अचानक से , जोश में भर गया, जल्दी से,भागकर, रोली में नहाकर, वो आपके मस्तक पर, सवार हो गया।
1. कल सरहद देखा...वाघा बॉर्डर कंटीली तारें.. खेतों के बीच... सरसों के पीले फूल इस तरफ भी उस तरफ भी एक लम्बी सड़क के बीच ही दो बंद दरवाजे इधर अमृतसर उधर लाहौर दोनों तरफ फौजें इक दूजे पर बंदूकें ताने आँखे तरेरे कब गोलियां एक दूसरे के सीने में उतार दें एक तरफ तिरंगा,दूसरी तरह उनका जो इधर वही उधर सड़क तो अब भी लाहौर को जाती है पर मुसाफिर नहीं...!