वहां अब उस शहर में जिसमें सपनों के धागे बुने थे , रात के पहर में ! जहां खाई थी वो कसमें चांद को साक्षी मानकर ! वादे किए थे वहां तेरी रूह को जानकर ! अब बढ़ जाती है बेचैनी और फासले हंसते हैं ,रोती है नजदीकियां अकेला मानकर ! अब बस बची है मेरे पास खाली दवात और कलम सच जानकर!
यू ना देखा करो तुम चाँद को इख्लास(प्रेम) नजरों से.. कि यह रोग जानलेवा होता है । निशान जिस्म पर नुमा नहीं होते ... मासूम दिल इज़ितराब(बेचैनी) में रहता है।
तुम्हें पाने की तुम्हें अपना बनाने की तुम्हारे रूह में बस जाने की तुम्हारे सांसों में समाने की आपकी मुहब्बत में हुए हम जैसे वैसे ही आपको पागल बनाने की खुली आँखों से देखा जो सपना उसको हकीकत बनाने की तेरी याद में तड़पे अबतक तुम्हें पास में लाने की||