कुछ खास नहीं है,कोई नज़ारा नहीं है,
दिल टूटा ज़रूर है,मगर बेचारा नहीं है।
उसके हर बातों को हंसके माना है हमने,
उसने मेरी बातों को कभी स्वीकारा नहीं है।
वो शहर में सुना रहे किस्से बच्चों की तरक्की के,
बुढ़ापे में फिर भी,कोई सहारा नहीं है।
वो बड़े लोग है गौरव,इनसे बचके रहना है,
अब इतना बड़ा होना, हमें गवारा नहीं है।
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