दुनिया की नज़रों में, मैं अच्छा हो जाऊं,
मैं ऐसा क्या करूँ की तेरा ही हो जाऊं!
अब तो कौन किस का ऐतबार करता है,
मैं क्या झूठ बोलूं कि मैं सच्चा हो जाऊं!
दुनियादारी अब मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं चाहता हूँ फिर से मैं बच्चा हो जाऊं!
मैं सजायाफ्ता हूँ, बेशक, मेरी गलती है,
क्या गुनाह करूँ, जो बेगुनाह हो जाऊं!
ऐसा हो कि खुद से जो खुदको मिला दे,
काश मैं वो वैसा कोई आईना हो जाऊं!
हर अल्फ़ाज़ से तुम मुकम्मल किताब हो
मैं ऐसा क्या लिखूं जो ग़ज़ल हो जाऊं!
ख़ामोश लबों को पढ़ नहीं पाया "राज" _Mr Kashish
मैं ऐसा क्या पढूं की अनपढ़ हो जाऊं!
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