QUOTES ON #बेगुनाह

#बेगुनाह quotes

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25 AUG 2020 AT 8:58

दुनिया की नज़रों में, मैं अच्छा हो जाऊं,
मैं ऐसा क्या करूँ की तेरा ही हो जाऊं!

अब तो कौन किस का ऐतबार करता है,
मैं क्या झूठ बोलूं कि मैं सच्चा हो जाऊं!

दुनियादारी अब मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं चाहता हूँ फिर से मैं बच्चा हो जाऊं!

मैं सजायाफ्ता हूँ, बेशक, मेरी गलती है,
क्या गुनाह करूँ, जो बेगुनाह हो जाऊं!

ऐसा हो कि खुद से जो खुदको मिला दे,
काश मैं वो वैसा कोई आईना हो जाऊं!

हर अल्फ़ाज़ से तुम मुकम्मल किताब हो
मैं ऐसा क्या लिखूं जो ग़ज़ल हो जाऊं!

ख़ामोश लबों को पढ़ नहीं पाया "राज" _Mr Kashish
मैं ऐसा क्या पढूं की अनपढ़ हो जाऊं!

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4 AUG 2020 AT 17:45

जितना आसान है
किसी पर झूठा आरोप
लगाने हेतु बोलना
उससे कहीं अधिक
कठिन होता है
झूठा आरोप लगाए जाने
पर कुछ बोल पाना...
मन में प्रश्नों का
झंझावात आ जाता है ,
मन उलझ जाता है
विचारों की उधेड़बुन में
और ढूँढने लगता है
वो शब्द.....जो मुझे आरोप मुक्त करे
और आँखें ढूँढने लगती हैं
वो शख़्स...........जो बिना कुछ बोले
इनमें मेरी बेगुनाही पढ़ ले ।।

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15 JUL 2020 AT 19:10

उन्होंने कहा गर बेगुनाह हो तो सुबूत दो मुझे
मैंने कहा अब इससे बड़ा सुबूत क्या दें,
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क्योंकि सुबूत तो हमेशा सच का ही मांगा जाता है...!

انہوںنے کہا گر بیگناہ ہو تو سبوت رو مجھے
مینے کہا اب اس سے بڑا سبوت کیا دیں،۔
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کیونکہ سبوت تو ہمیشہ سچ کا ہی مانگا جاتا ہے...!

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10 MAY 2017 AT 2:29

चलो हम दोनों ही बच्चे बन जाते हैं
फ़िर से 'बेपरवाह', 'बेग़ैरत', 'बेज़बान' हो जाते हैं;
तुम मुझसे ना लड़ो, मैं तुमसे ना लडूँ
चलो हम दोनों ही 'बेगुनाह' हो जाते हैं;
मैं तुम्हे देखकर खिल जाऊँ
तुम मुझे देख कर शरमा जाओ
चलो हम दोनों ही 'बेसब्र' हो जाते हैं;
मैं तुम्हें छूकर मचल जाऊँ
तुम मुझे छूकर सिहर जाओ
चलो हम दोनों ही 'बेशर्म' हो जाते हैं;
तुम मुझसे मिलने की ज़िद्द करो
मैं तुम्हें देखने को आसमाँ उठा लूँ
चलो हम दोनों ही 'बेफ़िक्र' हो जाते हैं;
तुम बस मुझसे खेलती रहो
मैं बस तुमसे खेलता रहूँ
चलो हम दोनों ही 'बेक़रार' हो जाते हैं;
तुम भोली हो जाओ, मैं शैतान हो जाता हूँ
चलो हम दोनों ही बेनज़ीर, बेचैन, बेख़बर हो जाते हैं
- साकेत गर्ग

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13 MAR 2020 AT 0:30

मुझसे किनारा कर लिया है तो मेरे गुनाह ना पुछो

कहीं में बेगुनाह निकला तो तुम जी नही पाओगे,।
शादाब कमाल

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6 JAN 2018 AT 10:59

बेगुनाह चोर मिरा, घर से रिहा है,

तुम घर रहते, कातिल बन बैठे हो ।

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7 FEB 2019 AT 0:50

हकीकत क्या और झूठ क्या वो जानते नहीं।
बेगुनाह की बेगुनाही वो मानते नहीं।

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4 NOV 2017 AT 1:55

लो जीत गयी सियासत, नफ़रत और फ़िरक़ा-परस्ती
सुना है आज फ़िर, दो बेगुनाहों का दिल दुखा है कहीं

- साकेत गर्ग

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गुमनामी के अंधकार में जिये जा रहें हैं..
बेगुनाह हूँ फिर भी गुनाहगार हुए जा रहे हैं ।

वक़्त बुरा है मेरा इसलिये मौन हूँ..
सही वक्त पे बता दूंगा कि कौन हूँ ।।

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24 JUL 2020 AT 10:00

नज़रें क़ातिल हैं उनकी फिर भी वो बेगुनाह है
हमने तो की थी मोहब्बत फिर भी गुनहगार निकले।

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