टुट कर बिखर गए आज फिर चहेरा का नकाब उतर आया फिर यु मुस्करा के निकले कब तलक जहां में कब तलक दर्द भीतर ही भीतर सहते रहे कब तक दुनिया के सामने मुस्कराते रहे कब तक जहां को खुशियां बांटते रहे वो हर एक शख्स जिसने साथ छोडा था आज फिर मेरे साथ आकर खड़ा था जानते हैं जब जहां में कोई अपना नहीं है कब तक दिल को झूठी तसल्ली देता जाऊं कब तकआंसूओं को बस पोछता जाऊ कब तक बस झुठे ख्वाब संजोता जाऊं एक दिन तो ये होना हि था मुझे टुट कर फिर बिखरना हि था वो झुठा नकाब फिर उतरना हि था खुदा से क्या हम फरियाद करें हम जब गम में मेरी सदाएं सुना नहीं तो मौत कि मेरी फरियाद कहा सुनेगा ये सिलसिला जाने अब कहां जा के टुटेगा
मोहब्बत़ तो नहीं उन्हें हमसे, मगर, न जाने क्यों? हमारी मोहब्बत़ जानने को, बेताब रहते है...। तो........., हमने भी कह दिया उनसे, हमारी निगाहों में, जिसकी, तुम्हें तस्वीर दिख जाए, उन्ही से हम, बेइंतहा प्यार करते हैं।।
इश्क़ यू ही, हमसे मत कर बैठ ना....., हमें चाहने कि बेवजह, जिद्द मत करना....., अगर होगी हिम्मत, हमारे लिए जमाने से लड़ने की....., तभी बेइंतहा, मोहब्बत हमसे करना.....।।
इंतज़ार यूँ उस प्यार का कभी ख़तम न हुआ इख़्तियार यूँ बेवफ़ा यार का कभी ख़तम न हुआ यूँ वो छोड़ गया इस अंधेरी रात में अकेला ही हमें घनघोर अंधेरा यूँ रात का कभी ख़तम न हुआ
ना ढूंढा कर मुझको जमाने में, तेरा ही अक्स हूँ मैं, तेरे होठों को छूकर जो गुजरी हाँ वही लफ्ज हूँ मैं, फड़क उठती है आज भी बेइंतहा जो तेरे नाम पर, टटोलकर देख इश्क का धंसा हुआ वही नब्ज हूँ मैं !