आंखे कितनी गहरी है , बातें सुकूँ-नवाज़ है..
उसके होंठों पर थिरकती हंसी, मानो कोई साज़ है..
वो मिट्टी जो तेरे पांवो को छूती है, कितनी खुशनसीब है..
वो फूल जो तेरे बालों मे लगता है, कितना पाक-बाज़ है..
आईने की हालत क्या बयां हो, पागल हुआ जाता है..
वो भी हरे हुए तेरी इक झलक से,जो दरख़्त उम्र-दराज़ है..
मैं बे-सुख़न हूँ , उसका क़ातिल हुस्न देखकर..
सोचो वो किस कैफ़ियत मे है, जो उसका हम-राज़ है..
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