स्त्रियां निभाती रहती हैं अनुबंध, प्रतिबंध और ढोती रहती हैं संकल्प , विकल्प वो नहीं कर पाती जिम्मेदारियों की ग्रंथियों का विसर्जन कदाचित् स्वतंत्रता बाधक है उनकी तंत्रिका तंत्र में
यदि पा लिया ख़ुद की इच्छाओं पर विजय , तो अन्य किसी साधना की ज़रूरत ही नहीं। आत्ममंथन से मिल जाऊँगा मैं ,मैं बुद्ध हूँ, मुझे किसी प्रमाण की ज़रूरत ही नहीं।