बुझा कर दिये वो मेरी हसरतों के,
उजालों की मुझको दुआ दे रहे हैं!
बड़े संगदिल हैं वो मुझे ज़ख्म देंगे,
उन्हें क्या ख़बर है कि क्या दे रहे हैं!
मिटे हैं जो उन पर दिलोजान से हम,
वो बदले में हमको जफ़ा दे रहे हैं.!
हमारी भी ज़िद है गला देंगे पत्थर,
उन्हें बेसबब हम वफ़ा दे रहे हैं..!
बुझे हैं जो शोले वफाओं के दिल में,
इशारों से उनको हवा दे रहे हैं..!
तरानों में उनका ज़िक्र इसलिए है,
उन्हें हम गुलाबी सुबह दे रहे हैं..!
स्वतंत्र मेरे लिखने का मतलब यही है,
हमें इश्क़ है हम बता दे रहे हैं..!
सिद्धार्थ मिश्र
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