एक एक करके दिन युही गुजरते जायेंगे। एक एक सपने धीरे धीरे बिखरते जायेंगे। कब, क्यों, कैसे, कहाँ, कौन, किसके, क्या, सोचते सोचते एक ही घर में सभी जायेंगे।
महफ़िल भी रोएगा ,ये शमा भी रो देगी की महफ़िल भी रोएगा ,ये शमा भी रो देगी आग लगा कभी जेहन में मेरे गर तो कतरा कतरा लहू भी रोएगा अपनी कविता से हम यूं मोह लेगें जग को कि मेरे जनाजे पे, मेरा कातिल भी रोएगा