*आह*निकली तब-तब, जब-जब दिल टूटें है,,
ऐसे ही नही,इस *आह* से,,
शायरों ने मुशायरें लुटें हैं,,
हर *दर्दे-ए-आह* की कीमत लिये है, सफहें,,
जितने गहरे लिखे दर्द, उतने ऊँचे बिके है,,
बस चोट करे*आह*,दर्द-ए-जख्म के मुकाम तलक,,
फिर तो *आह* भी,*वाह-वाह* के दाम पर बिकें हैं।।
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