उलझ सी गई है ये जिंदगी इन बालों की तरह।
एक एक कर इनको सुलझाते जा रही हूं मैं,
सब कुछ पाकर भी सबसे दूर होते जा रही हूं मैं।-
आ बाहर बारिश में
कि अपने बालों को आज भीग जाने दे
जो गेसूऐं तेरे रूख्सर से जा चिपके
उन्हें आज मेरी उँगलियों से हटाने दे-
यार तू कभी बैठे पास तो बताऊँ तुझे
मेरे जख्म कितने गहरे है दिखाऊँ तुझे
मैं तेरा हाथ पकड़कर ले जाऊँ और
बादलो की टहनियों पर झुलाऊँ तुझे
अगर तू रूठे किसी बात पर तो फिर
एक बच्चे की तरह मैं बहलाऊँ तुझे
मेरा वक़्त बदले तो काले रंग के बूट
और एक जामनी सूट दिलाऊँ तुझे
और फिर तेरे बालों से क्लिप हटाकर
मैं थोड़ा सा जानबूझकर सताऊँ तुझे
दिल खोल के रख देंगे यार आ तो सही
अब चार शब्दों मैं कैसे समझाऊँ तुझे-
ईशाद किसी इतवार खुले छोड़ा करो इन बालों को
हवाओं को राहत मिलेगी मेरे तक़ाज़े के साथ साथ-
बिखरे बालो पर कोई गझल लिख दु..
स्याही हो जजबात, कागज दिल को कर दु..
लेहराऊ मन मयूरा, संग तेरी घटाओके,
लेहराते हर जजबात पर, एक नई गझल लिख दु..।-
कभी बालों में कभी बातों में उलझाते हो
बाहों में भरकर क्यों हमें सुलगाते हो-