QUOTES ON #बाबूजी

#बाबूजी quotes

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छोटी उम्र और ये चेहरा देख कर नकारा मत समझना साहेब,जिमेदारी परिवार की उस समय ही मिल गई थी, जब आप पापा से पैसे लेकर चौकलेट लिया करते थे..

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13 OCT 2019 AT 10:41

चिराग़ से कम नहीं मेरे बाबूजी
पूरे घर को रोशनी देते हैं खुद अँधेरे में रहकर
मेरा बदन सजाया नए-नए कपड़ों से
छिपाकर अपनी चाहत खुद पुरानी धोती में रहकर
मुझे जब भी भोजन मिला पेट भरकर मिला
वो झूठ बोल देते हैं मैंने भी खा लिया भूखे में रहकर
कभी-कभी दिल करता है एक थाली में तीन रोटी हो
मैं एक ही खाऊँ उन्हें दो खाते देखूँ पास में रहकर
ये बेनाम इतना बुरा था के कदम डगमगा जाये
आज सही रास्ते पर है उनके साये में रहकर
मेरे अल्ला मुझे भी मौत आ जाए उस दिन
मैं बोझ क्या करूँगा धरती पर अकेले में रहकर

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17 JUN 2018 AT 11:21

वालिद का रिश्ता और शफ़क़त के नाम पर
महज़ शीशे में क़ैद एक शख़्स देखा है मैंने ।।

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17 AUG 2021 AT 20:37

बाबू जी कहते थे❤️

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10 MAR 2019 AT 22:08

हमार बाबूजी हमरा सिखइनीं
लोक लाज़ के मान बतइनीं
चाहे कुछू हो जाई
मर्यादा के पाठ पढइनीं
सांच झूठ के खेल गिनइनीं
बड़ छोट के मान कहइनीं
कठिनाई में जिनगी सवरनीं
भवसागर से पार उतरनीं
गुस्सा पाले के राज़ बतइनीं
कुल के मान ह जहु गिनइनीं
हां हमार बाबूजी हमरा सिखइनीं
गुण अवगुण के परख़ बतइनीं..

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18 JUN 2020 AT 9:23

शहर में बड़ी-बड़ी दुकानें थी सजी
खिलौनों, कपड़ों, किताबों से भरी
और मेरे बाबूजी की छोटी सी नौकरी

वो बरसों तक अपने लिये नया कुर्ता नहीं सिलवा पाए
पुराना फटता और सिल जाता, लेकिन कपड़े,
खिलौनें, किताबें मैं जो भी माँगता मुझे मिल जाता

कुछ किस्से हैं जो हमेशाँ के लिये,
मेरे दिल पर दर्ज हो गये है
मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा कि मेरी,
खुशियां खरीदने में बाबूजी खर्च हो गये है....

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31 DEC 2019 AT 18:05

एक ही चंद्रमा काफ़ी है,
जग रौशन कर जाने को,
संबोधन हो न हो 'बाबू जी'
के होने से ही जीवन पथ
प्रकाशित है।

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19 JUN 2022 AT 6:26

बाबा एक शब्द नहीं बच्चों की पूरी दुनिया है
बचपन की यह रिक्तता कभी भी भरी नहीं..
बस खुद से एक छलावा ही रहा उम्र भर
पिता-सा प्यार मिला तो बहुत मगर पिता नहीं...
काश कोई एक खुशनुमा याद थमा जाते बाबा
उम्र के इस पड़ाव पर आज हाथ रिक्त रहते नहीं...
बस, कुछ धुंधली सी यादें अंतिम सफर की
मासूम आंखों में आज भी अंकित है,आंसू नहीं...
छीन ले गया था हम सब का बचपन वो पल
बेचारगी के साये में कभी खुशियां पनपती नहीं...
दायरों में बंधी ज़िन्दगी बंदिशों में कैद परिंदे सी
पंख है मगर उन्मुक्त उड़ने को खुला आसमां नहीं ..
मां के सफ़ेद आंचल में छिपी थी वेदनाएं अपार
उजड़े दरख़्त तो लताओं का कोई सहारा नहीं ...
गुज़री है एक ज़िन्दगी खालीपन के सरमाये में
अनकहे लफ्ज़ रहे अधूरे कभी हुए मुक्कमल नहीं...!

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25 JUL 2021 AT 8:33

चाय शायद बाबूजी से जोड़ती है
आज पिताजी चाय पीते पीते बाबूजी के बारे में सोच रहे थे

बाबूजी के जीते-जी पिताजी को चाय इतनी प्रिय नही थी

ह्म्म्म कुछ चीज़ें हमे हमारे सुनहरे पल याद दिलाती

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17 APR 2021 AT 22:29

बाबूजी❤️

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