यूँ तो ज़िन्दगी कहने को मेरी थी
पर थी तो साथ तुम्हारे ही थी ना,
कहने को साँस मैं लेता था मग़र
मेरी जान हाथ तुम्हारे ही थी ना,
जिसपे बसाया था क़भी सपनों का घरौंदा
वो शज़र वो शाख तुम्हारी ही थी ना,
उस बसेरे के टूट जाने से पहले
होंठों पऱ हर फ़रियाद तुम्हारी ही थी ना,
आँसु बहे जब भी यूँ ही बैठे-बैठे
शाम ढ़ले वो याद तुम्हारी ही थी न,
कल रात जिसने नींद से जगाया था
वो प्यारी सी आवाज़ तुम्हारी ही थी ना,
ख़ुदा के दर पऱ कई सज़दे किये मैंने
पऱ दुआओं में हर बात तुम्हारी ही थी ना..!
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