कभी रेवडी मेरठ वाली, कभी बनारसी पान हो तुम ,
कभी खुबसुरत सहर तो, कभी मदमाती शाम हो तुम ,
कभी रेवड़ी मेरठ वाली, कभी बनारसी पान हो तुम ,
गुदगुदाये जो मन ही मन मुझे ,
वो हंसता हुआ ख्याल हो तुम ,
घायल कर दिया मुझे पहली ही तीरेनजर मे ,
क्या खुब तीरअंदाज हो तुम ,
कभी रेवडी मेरठ वाली, कभी बनारसी पान हो तुम ,
जेष्ठ की तपती जमीन पर जो रिमझिम बरस पडे. ,
सावन की वो ठंडी फुहार हो तुम ,
जिनसे जुड़े हर रिश्ते महके फुलों की तरह ,
क्या खुब बागबान हो तुम ,
कभी रेवडी मेरठ वाली ,कभी बनारसी पान हो तुम ...
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